आज कहानी इलाहाबाद की गीता जायसवाल की। कभी एक-एक रुपए के लिए परेशान थीं। बेटी की पढ़ाई तक अच्छे से नहीं करवा पा रहीं थीं। आज महीने का 50 हजार रुपए कमाती हैं। टिफिन सेंटर शुरू करने से लेकर इडली-सांभर के स्टॉल तक की उनकी कहानी इंस्पायरिंग है। ये कहानी जानिए उन्हीं की जुबानी...
गीता बताती हैं- ये बात इलाहाबाद की है। तब मैं पति के साथ रहती थी। एक छोटी बच्ची थी। पति जो कमाते थे, उससे बमुश्किल घर चल पाता था। मेरे पास अपनी बेसिक जरूरतों को पूरा करने के भी पैसे नहीं होते थे। बच्ची की अच्छी पढ़ाई-लिखाई भी हम नहीं करवा पा रहे थे।
उन्होंने कहा, 'मैं सोच रही थी कि, ऐसा क्या करूं, जिससे चार पैसे कमा सकूं। किसी ने मुझे टिफिन सेंटर शुरू करने की सलाह दी। मैं एक लड़की को टिफिन देने लगी। कुछ दिन बाद एक पीजी का काम मुझे मिल गया। वहां 15 बच्चों के लिए खाना देना था। तब मैं 1800 रुपए में तीन टाइम खाना दिया करती थी। सुबह से देर रात तक मेहनत होती थी, लेकिन इससे मेरे पास महीने के आठ से दस हजार रुपए बचने लगे थे।'
'खाना अच्छा था तो धीरे-धीरे टिफिन बढ़े और संख्या 40 तक पहुंच गई। 2011 से 2016 तक यही चलता रहा। फिर उस पीजी का काम बंद हो गया तो ग्राहक भी चले गए। नए ग्राहक मिल नहीं रहे थे। इलाहाबाद में मैं कुछ और कर नहीं सकती थी, क्योंकि बेइज्जती का डर था। मेरी एक बहन दिल्ली में रहती थी तो मैं 2016 में ही अपनी बच्ची को लेकर दिल्ली आ गई। मकसद साफ था कि खाने-पीने से जुड़ा कुछ काम करना है।'
गीता ने इस तरह से बिजनेस की शुरूआत की थी। कहती हैं, इतने पैसे भी नहीं थे कि अपना ठेला लगा सकें।
दिल्ली में पहला बिजनेस फेल हो गया
वो बताती हैं कि मैं अपनी दिल्ली वाली बहन के घर में ही रहने लगी और कुछ दिनों बाद पूड़ी-कचौड़ी, ब्रेड पकौड़ा बेचने का स्टॉल लगाया, लेकिन वो काम ज्यादा चला नहीं। ग्राहक नहीं मिल रहे थे तो मैंने फिर टिफिन सेंटर शुरू करने का सोचा। जहां रहती थी, वहां सब जगह पर्चे चिपका दिए। कई दिनों बाद एक ऑर्डर मिला। जिसने ऑर्डर दिया, वो IAS की तैयारी कर रहा था। उसे खाना अच्छा लगा तो उसके जरिए इंस्टीट्यूट के कई लड़कों ने टिफिन लेना शुरू कर दिया। मैंने साढ़े तीन हजार रुपए में तीन टाइम मील दिया करती थी। काम अच्छा सेट हो गया था। महीने का 35 से 40 हजार रुपए निकलने लगे थे। चार साल ये सब चलते रहा लेकिन मार्च 2020 में सब बंद हो गया।
कोरोना ने टिफिन का बिजनेस जीरो पर ला दिया
उन्होंने कहा- चार दिन में ही मेरे टिफिन 60 से घटकर 4 पर आ गए। मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। फिर किसी ने बताया कि कोरोना वायरस आया है, इसलिए सब जा रहे हैं। मेरा पूरा जमा हुआ काम बंद हो गया। कुछ दिनों में जो जुड़ा पैसा था, वो भी खत्म होने लगा तो मैं एक हार्ट पेशेंट की देखरेख की काम करने लगी। उन्हीं के घर रहती थी। बच्ची को उसकी मौसी के पास छोड़ दिया था। तीन महीने तक वहीं रही।
अब गीता का बिजनेस पूरी तरह सेट हो चुका है। फूड स्टॉल के लिए जरूरी सेटअप भी उन्होंने खड़ा कर लिया।
इडली-सांभर के स्टॉल से मिली सक्सेस, अब महीने की बिक्री 90 हजार की
वो बताती हैं- जुलाई में दोबारा अपने घर आई तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। किराया देना था। बच्ची की स्कूल-ट्यूशन की फीस देना थी। बड़ी हिम्मत करके मैंने एक बार फिर फूड स्टॉल शुरू किया, लेकिन इस बार इडली-सांभर बेचने का सोचा, क्योंकि इसमें लागत कम आती है और हर उम्र के लोग ये पंसद करते हैं। 28 जुलाई को काम शुरू किया था। कुछ दिनों में ही बिजनेस अच्छा सेट हो गया। मैं शालीमार बाग में स्टॉल लगाती हूं। शाम 5 से रात 10 बजे तक स्टॉल लगता है। 40 से 50 ग्राहकों का आना आम बात है। इडली के साथ ही डोसा भी बेचती हूं। अब एक दिन का तीन से साढ़े तीन हजार रुपए का बिजनेस है। सब काटकर महीने का 40 से 45 हजार रुपए बच जाता है।'
गीता कहती हैं कि सोशल मीडिया पर वीडियो बनाने वाले कई लोगों ने मेरी मदद भी की। इसी काम को अब आगे बढ़ाना है। अब टिफिन सेंटर नहीं चलाऊंगी। कोरोना ने पहले मेरे लिए बहुत बड़ी दिक्कत खड़ी कर दी थी, लेकिन इसी से मैं एक नए बिजनेस पर शिफ्ट हो पाई और अभी सब ठीक चल रहा है। सबकी उधारी चुका दी। बच्ची की कोचिंग-स्कूल की फीस भी भर दी। उसे ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना-लिखाना और कुछ बनाना ही मेरा सपना है।
हैदराबाद में निकाय चुनाव के लिए आज मतदान हो रहा है। इससे पहले यहां का चुनावी कैंपेन सुर्खियों में रहा। राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे खासी तवज्जो मिली। इसके पीछे वजह रही BJP के बड़े नेताओं का मैदान में उतरना। गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी के फायरब्रांड मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे दिग्गजों ने यहां रोड शो और रैलियां कीं। अब सवाल उठता है कि आखिर निकाय चुनाव के लिए BJP बड़े नेताओं को क्यों मैदान उतार रही है। 90 के दशक में तो अटल-आडवाणी विधानसभा चुनावों में भी ऐसा कैंपेन नहीं करते थे।
दरअसल, तब की भाजपा और अब की भाजपा और उसकी पॉलिटिकल स्ट्रेटजी में बहुत कुछ बदला है। इसे समझने के लिए हमें फ्लैशबैक में जाना होगा। 2014 में प्रचंड बहुमत के साथ देश में भाजपा की सरकार बनी। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और अमित शाह मैन ऑफ द मैच। इस पॉलिटिकल टूर्नामेंट को जीतने के दो महीने बाद भाजपा की कमान अमित शाह को सौंप दी गई। इसके बाद मोदी-शाह की जोड़ी ने अपनी टीम और रणनीति दोनों नए सिरे से गढ़ना शुरू किया। पी टू पी यानी पंचायत से पार्लियामेंट के फार्मूले पर काम करना शुरू किया।
पार्टी के बड़े नेताओं को बूथ स्तर तक जाकर जमीन तैयार करने को कहा गया। खुद अमित शाह ने पन्ना प्रमुखों के साथ बैठकें शुरू कीं। कोशिश रही कि हर राज्य में भाजपा की सरकार हो या वह सरकार में रहे। इसके लिए उन्होंने जोड़-तोड़ से भी गुरेज नहीं किया और एक के बाद एक राज्यों में भाजपा की सरकार बनती गई। खासकर गैर हिंदी राज्यों में।
2014 लोकसभा के दौरान ही ओडिशा में विधानसभा के चुनाव हुए थे। तब भाजपा को सिर्फ 10 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन इसके बाद अमित शाह ने यहां के निकाय चुनावों में जोर लगाना शुरू किया। बड़े नेताओं को मैदान में उतारा। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और झारखंड के तब के सीएम रघुवर दास ने कैम्पेन का मोर्चा संभाला। पार्टी को इसका फायदा भी हुआ और 297 सीटों पर जीत मिली। तभी लगने लगा था कि अब भाजपा वहां मजबूती से पैर पसार रही है और उसका असर अगले विधानसभा और 2019 के लोकसभा में भी देखने को मिला। बूथ स्तर तक जाकर राजनीति करने का ही नतीजा था कि लोकसभा में भाजपा को 8 और विधानसभा में 23 सीटें मिलीं।
GHMC के चुनाव में भाजपा पूरी ताकत झोंक रही है। रविवार को सिकंदराबाद में गृह मंत्री अमित शाह ने रोड शो किया।
2014 के आखिर में महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव हुए। भाजपा छोटे भाई की भूमिका में नहीं रहना चाहती थी और शिवसेना से अलग होकर अकेले मैदान में उतरी। वह राज्य में सबसे बड़े दल के रूप उभरी। उसे 122 सीटें मिलीं। सबसे बड़ी बात की महाराष्ट्र में भाजपा का पहली बार मुख्यमंत्री बना। इसके पहले भाजपा महाराष्ट्र में छोटे भाई की ही भूमिका में होती थी। 2019 के चुनाव में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन शिवसेना ने गठबंधन से अलग होकर कांग्रेस और NCP के साथ सरकार बना ली।
2014 में ही जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा के लिए चुनाव हुआ। इसमें भाजपा को बड़ी सफलता मिली। PDP के बाद वो सबसे बड़ी पार्टी बनी और 25 सीटें जीतीं। एक रणनीति के तहत भाजपा PDP के साथ सरकार में शामिल हो गई। हालांकि, ज्यादा दिन दोनों की दोस्ती नहीं चली और ढाई साल बाद BJP अलग भी हो गई।
2016 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, पुड्डुचेरी और असम विधानसभा के चुनाव हुए। भाजपा ने पश्चिम बंगाल, केरल और असम पर ज्यादा जोर लगाया। अमित शाह ने पश्चिम बंगाल और केरल में जोरदार प्रचार किया, जबकि मोदी ने असम का मोर्चा संभाला। असम में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली। उसने 86 सीटें हासिल करके कांग्रेस के एक दशक के शासन का अंत कर दिया, लेकिन पश्चिम बंगाल में भाजपा सिंगल डिजिट में ही रह गई।
हालांकि, तब भाजपा बंगाल में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में कामयाब रही। उसका फायदा लोकसभा चुनाव में हुआ और पहली बार भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी और 18 सीटें हासिल कीं। इस बार सत्ता की सीधी लड़ाई भाजपा और टीएमसी के बीच है। हाल ही में अमित शाह बंगाल दौरे से लौटे हैं।
केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में भाजपा की दाल नहीं गली। केरल में सिर्फ एक सीट पर BJP को जीत मिली, जबकि तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में खाता नहीं खुला। अरुणाचल प्रदेश में 2016 में काफी राजनीतिक उठापटक हुई। यहां कांग्रेस के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने 43 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए। अब पेमा खांडू बीजेपी से अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
2017 में अगर गैर हिंदी भाषी राज्यों की बात करें तो पंजाब, गुजरात, मणिपुर और गोवा में चुनाव हुए। इनमें से पंजाब को छोड़ दें तो बाकी जगह भाजपा सरकार बनाने में कामयाब रही। मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी बनी कांग्रेस लेकिन सरकार बनी भाजपा की। इसी तरह गोवा में भी कांग्रेस बड़ी पार्टी बनी, लेकिन मुख्यमंत्री बना भाजपा का।
2018 की शुरुआत त्रिपुरा और कर्नाटक में चुनाव हुए। त्रिपुरा में BJP ने वामपंथ के किले को ध्वस्त कर दिया और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। कर्नाटक में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। हालांकि, यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चली और 2019 में फिर से भाजपा सत्ता में आ गई। इसके अलावा मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में भी 2018 में चुनाव हुए। यहां भाजपा को कुछ खास नहीं मिला, लेकिन वह सरकार में शामिल हो गई। इन तीनों ही राज्यों में भाजपा सरकार में है।
2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही आन्ध्र प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए। इसमें आंध्र और सिक्किम में खाता नहीं खुला। ओडिशा में BJP पहले से मजबूत हुई। जबकि, अरुणाचल में खुद के दम पर भाजपा की सरकार बनी। अगले साल पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुड्डुचेरी और असम में चुनाव होने हैं। इसमें से असम में भाजपा सरकार में है। पश्चिम बंगाल में वह टीएमसी को कड़ी टक्कर दे रही है, जबकि तमिलनाडु और पुड्डुचेरी में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार यहां कमल खिलता है या नहीं।
कोरोनावायरस ने किसी इंडस्ट्री को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, तो वो है एविएशन। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) का अनुमान है कि कोरोना की वजह से दुनियाभर की एविएशन इंडस्ट्री को अभी तक 31 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
भारत समेत कई देशों में डोमेस्टिक फ्लाइट तो शुरू हो गई हैं, लेकिन इंटरनेशनल फ्लाइट अभी भी पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाई हैं। यही वजह है कि कोरोना के असर से इंडस्ट्री को उबारने के लिए IATA एक नया प्लान लेकर आई है और वो है कोविड पासपोर्ट। ये क्या है? इसकी जरूरत क्यों पड़ी? क्या इससे हवाई सफर करना मुश्किल हो जाएगा? आइए जानते हैं...
कोविड पासपोर्ट क्या है?
दरअसल, IATA एक मोबाइल ऐप पर काम कर रहा है, जो दुनियाभर में ट्रैवल पास की तरह समझा जाएगा। इस ऐप को कोरोना की वजह से लाने का प्लान है, इसलिए इसे कोविड पासपोर्ट कहा जा रहा है। IATA के इस ऐप में यात्री के कोरोना टेस्ट, उसे वैक्सीन लगी है या नहीं (वैक्सीन आने के बाद) जैसी जानकारी होगी। इसके साथ ही इस ऐप में यात्री के पासपोर्ट के ई-कॉपी भी होगी।
इस ऐप पर यात्री का QR कोड होगा, जिसे स्कैन करते ही उसकी सारी डिटेल सामने आ जाएगी। ये ऐप IATA के मौजूदा टाइमैटिक सिस्टम पर बेस्ड होगी, जिसका इस्तेमाल डॉक्यूमेंट को वेरिफाई करने के लिए होता है। इसके साथ ही ये ऐप ब्लॉक-चैन टेक्नोलॉजी पर काम करेगा और इसमें यूजर का डेटा स्टोर नहीं होगा।
इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
इसकी जरूरत इसलिए पड़ रही है, क्योंकि इंटरनेशनल फ्लाइट से आने वाले पैसेंजर्स कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं। चीन की वेबसाइट साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, पिछले दिनों शंघाई में कई कोरोना पॉजिटिव केस आए। इनमें से कई ऐसे थे जो यात्रा करके लौटे थे।
9 नवंबर से भारत और ओमान के बीच एयर बबल एग्रीमेंट के तहत इंटरनेशनल उड़ान शुरू हुई। इस दौरान भी कई यात्री पॉजिटिव निकले, जिसके बाद सीटों की संख्या 10 हजार से घटाकर 5 हजार कर दी गई।
वहीं, हॉन्गकॉन्ग ने भी कोरोना पॉजिटिव मिलने के बाद 3 दिसंबर तक एयर इंडिया की फ्लाइट पर रोक लगा दी है। इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में आने वाले हर व्यक्ति के लिए RT-PCR टेस्ट कराना जरूरी कर दिया है। फिर चाहे वो बस से आए या ट्रेन से या फ्लाइट से।
इंटरनेशनल फ्लाइट से कोरोना पॉजिटिव आने के बाद IATA को एक ऐसे ऐप की जरूरत महसूस हुई, जो यात्री के कोरोना टेस्ट से लेकर उसकी हर डिटेल बता सके। ताकि दोबारा से इंटरनेशनल फ्लाइट को सही तरह से शुरू किया जा सके और बार-बार इन्हें रोकने की जरूरत न पड़े।
क्या और भी कोई कारण?
हां। कोरोना की वजह से दुनिया की इकोनॉमी को झटका लगा है। एविएशन इंडस्ट्री को भी नुकसान झेलना पड़ा है। IATA के मुताबिक, कोरोना की वजह से इस साल एयरलाइन कंपनियों को 84.3 अरब डॉलर यानी करीब 6.23 लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। जबकि, उनके रेवेन्यू में भी 419 अरब डॉलर (31 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान होने की आशंका है। इसके अलावा यात्रियों की संख्या भी कम हो गई। एविएशन के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ, जब पायलटों की भी नौकरियां गईं। इन्हीं सबसे उबरने के लिए ऐसी कोशिशें की जा रही हैं।
क्या इससे हवाई सफर करना मुश्किल हो जाएगा?
नहीं, बल्कि इससे हवाई सफर पहले की तरह ही सेफ होगा। अमेरिका सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) का कहना है कि फ्लाइट में यात्री जगह-जगह सतहों को छूते हैं। कम जगह होने की वजह से यहां सोशल डिस्टेंसिंग भी रख पाना मुमकिन नहीं है।
कुछ फ्लाइट में इन-बिल्ट एयर फिल्ट्रेशन और वेंटिलेशन सिस्टम होता है, जो किसी भी तरह के वायरस को फैलने नहीं देता और फ्लाइट के अंदर की हवा को साफ करता रहता है, लेकिन ऐसा सिस्टम हर फ्लाइट में नहीं होता। इसलिए कोविड पासपोर्ट होने से इन सारी परेशानियों से बचा जा सकेगा।
IATA कब तक इस ऐप को लॉन्च कर देगा?
इस साल इस ऐप की पायलट टेस्टिंग शुरू हो जाएगी। जबकि, मार्च 2021 तक इसे एपल डिवाइस के लिए लॉन्च करने की बात कही जा रही है। वहीं, एंड्रॉयड डिवाइस के लिए इसे अप्रैल 2021 तक लॉन्च किया जा सकता है।
दुनिया भर में कोरोना के मरीजों में कावासाकी के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। लेकिन अभी तक इसके लक्षण जिन कोरोना पीड़ितों में देखने को मिले, उनमें ज्यादातर बच्चे थे। कावासाकी वैसे भी बच्चों की बीमारी मानी जाती है। लेकिन क्या हो जब यह बीमारी बच्चों के साथ-साथ 40 से 60 साल के एडल्ट्स में भी दिखने लगे?
कोरोनावायरस पर अभी भी तमाम रिसर्च जारी है, बहुत सी रिपोर्ट आ भी चुकी हैं। अभी तक यह संक्रमण डॉक्टर्स और रिसर्चर्स के लिए पहेली ही बना हुआ है। हाल ही में मुंबई के कोकिलाबेन हॉस्पिटल के ICU में एडमिट कोरोना के 50% से ज्यादा मरीजों में कावासाकी के लक्षण दिखे। हैरान करने वाली बात यह है कि इनकी उम्र 40 से 60 साल के बीच है।
भोपाल AIIMS की डॉ. उमा कुमारी कहती हैं कि कोरोना की वजह से इम्यून डिसऑर्डर हो रहा है। कावासाकी भी इसी वजह से होता है। यह बच्चों की बीमारी है, एडल्ट में इसके लक्षण दिखने की वजह रिसर्च का विषय है।
क्या होता है कावासाकी?
कावासाकी रोग को म्यूकोस्यूटियस लिम्फ नोड सिंड्रोम भी कहा जाता है। यह बचपन में होने वाली एक दुर्लभ बीमारी है, जो ब्लड वेसल्स को प्रभावित करती है। ये त्वचा, नाक, गले और मुंह के अंदर स्थित म्यूकस मेम्ब्रेन पर प्रभाव डालती है।
कावासाकी होने पर बच्चों की पूरी बॉडी में रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाती है। इससे कोरोनरी आर्टरी क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। यह रक्त वाहिकाएं ब्लड को हार्ट तक लेकर जाती हैं। इससे हार्ट की दिक्कत भी हो सकती है।
कावासाकी रोग होना कितना सामान्य है?
जापान, कोरिया और ताइवान समेत वेस्ट एशिया में कावासाकी रोग 10-20 गुना ज्यादा है। इससे पीड़ित अधिकतर बच्चे पांच वर्ष से कम उम्र के होते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में इसकी संभावना दोगुनी होती है।
कावासाकी रोग के क्या लक्षण हैं?
इस बीमारी के लक्षण कई स्टेज में उभर कर आते हैं। पहले और दूसरे स्टेज में इसका इलाज आसानी से हो जाता है। लेकिन अगर यह तीसरे या उसके बाद के स्टेज में पहुंच जाए, तो इससे उबरने में सालों लग जाते हैं। तीसरे या उसके बाद की स्टेज में इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।
एक्सपर्ट्स के पास अभी तक इस बीमारी के सटीक कारण के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। अक्सर कावासाकी रोग सर्दियों के अंत में होता है।
कई सिद्धांतों में इस बीमारी का संबंध बैक्टीरिया, वायरस या पर्यावरणिक वजहों से जोड़ा गया है, लेकिन अभी तक इनमें से किसी भी वजह की पुष्टि नहीं की गई है। कुछ जीन आपके बच्चे में कावासाकी रोग के फैलने की संभावना बढ़ा सकते हैं।
हार्ट के लिए खतरनाक कावासाकी
यह बीमारी हार्ट को प्रभावित करती है। कावासाकी रोग से पीड़ित ज्यादातर बच्चे पूरी तरह ठीक हो जाते हैं और उन्हें किसी भी तरह की समस्या नहीं होती है। हालांकि, ज्यादा बढ़ जाने से यह हार्ट को बुरी तरह डैमेज कर सकता है।
डॉ. उमा के मुताबिक, कोरोना में हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। उसे हम दोबारा भी मेंटेन कर सकते हैं। लेकिन बहुत से पीड़ितों में इम्यून डिसऑर्डर की समस्या भी देखी जा रही है।
इम्यून डिसऑर्डर में हमारे इम्यून सिस्टम ठीक से फंक्शन नहीं करते। इसके चलते कई बार ये अपने ही बॉडी के खिलाफ ट्रिगर कर जाते हैं।
कावासाकी भी इम्यून डिसऑर्डर से होता है। लेकिन इसे अभी पुख्ता तौर पार नहीं कहा जा सकता कि कोरोना पीड़ितों में कावासाकी के लक्षण दिखने की वजह इम्यून डिसऑर्डर है।
कोरोना के दौर में इससे भी बचना जरूरी
डॉ. उमा कहती हैं कि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि कावासाकी के लक्षण सभी कोरोना पीड़ितों में देखने को मिल रहे है। लेकिन यह बीमारी ठंड में होती है, इसलिए इस दौर में अगर कोरोना हो जाता है, तो इसके भी होने की संभावना बढ़ जाती है। बच्चों में यह खतरा विशेष तौर पर है। इससे बचने का एक ही तरीका है कि हम खुद को मजबूत रखें।
हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में आज ही के दिन कोई महिला प्रधानमंत्री बनी थी। ये न सिर्फ पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, बल्कि किसी मुस्लिम देश की भी पहली महिला थीं, जो प्रधानमंत्री बनीं। इनका नाम था बेनजीर भुट्टो। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सबसे बड़ी बेटी थीं बेनजीर, जिनका जन्म 21 जून 1953 को कराची शहर में हुआ था।
बेनजीर भुट्टो ने अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। 1977 में बेनजीर लंदन से पाकिस्तान लौट आईं। 1978 में जनरल जिया उल-हक पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। उनके आते ही बेनजीर के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को हत्या के एक मामले में फांसी हो गई। पिता की मौत के बाद बेनजीर ने राजनीतिक विरासत को संभाला।
10 अप्रैल 1986 को उन्होंने पाकिस्तान में सैन्य शासन के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। 1988 में एक प्लेन क्रैश में जिया उल-हक की मौत हो गई। उसके बाद 1 दिसंबर 1988 को बेनजीर पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। प्रधानमंत्री बनने से 3 महीने पहले ही उन्होंने बेटे को जन्म दिया था। जिस समय वो प्रधानमंत्री बनीं, उस समय उनकी उम्र 35 साल थी।
बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। पहली बार 1988 से 1990 तक और दूसरी बार 1993 से 1996 तक। भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने पर बेनजीर को 1999 में देश छोड़ना पड़ा था। 2007 में जब फौजी ताकत दम तोड़ रही थी और लोग लोकतंत्र के लिए आवाज उठा रहे थे, तब बेनजीर भुट्टो लौटी थीं। 27 दिसंबर 2007 को चुनाव प्रचार के दौरान उनकी हत्या कर दी गई।
लंदन के मैडम तुसाद म्यूजियम पर लगा मैडम तुसाद का मोम का पुतला।
मोम के पुतले बनाने वाली मैडम तुसाद का जन्म
1 दिसंबर 1761 को मैडम तुसाद का जन्म फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में हुआ था। उनका नाम मैरी ग्रासहोल्ट्ज था। उनकी मां पेरिस में डॉ. फिलिप कर्टियस के यहां काम करती थीं। डॉ. कर्टियस मोम के पुतले बनाया करते थे। डॉ. कर्टियस से ही मैडम तुसाद ने मोम के पुतले बनाना सीखा। मैडम तुसाद ने 16 साल की उम्र में पहला मोम का पुतला बनाया था। उन्होंने उस समय एक फिलॉस्फर फ्रैंक्वाइस वॉल्टैयर का पुतला बनाया था।
फ्रेंच रिवोल्यूशन के दौरान उन्होंने तीन महीने जेल में भी काटे। 1794 में उन्होंने फ्रैंक्वाइस तुसाद से शादी की। 1835 में उन्होंने लंदन की बेकर स्ट्रीट पर पहला स्टूडियो खोला। 1850 में 89 साल की उम्र में मैडम तुसाद का निधन हो गया। 1884 में उनका म्यूजियम बेकर स्ट्रीट से मेरिलबोन रोड पर शिफ्ट कर दिया गया, जहां ये आज भी है।
भारत और दुनिया में 1 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:
1640 : पुर्तगाल की 60 वर्ष की गुलामी के बाद स्पेन आजाद हुआ।
1761 : मोम के पुतलों के संग्रहालय बनाने वाली मैडम तुसाद का जन्म।
1959 : दुनिया के 12 देशों ने अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर कर अंटार्कटिक महाद्वीप को तमाम सैन्य गतिविधियों से मुक्त करके वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए संरक्षित रखने का संकल्प लिया।
1959 : बाहरी अंतरिक्ष से पृथ्वी का पहला रंगीन फोटो लिया गया।
1963 : नगालैंड भारत का 16वां राज्य बना।
1965 : सीमा सुरक्षा बल (BSF) की स्थापना।
1973 : इजरायल के संस्थापक डेविड बेन गुरियन का निधन।
1987 : अफगानिस्तान में नए संविधान के अनुसार डॉ. नजीबुल्लाह को देश का राष्ट्रपति चुना गया।
1991 : एड्स डे की शुरुआत।
1990 : पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित का निधन।
2001 : अफगानिस्तान में कंधार एयरपोर्ट पर तालिबान विरोधी कबायली संगठन का कब्जा।
2008 : बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष शिवचंद्र झा का निधन।
क्या हो रहा है वायरल : राहुल गांधी ने 28 नवंबर को एक फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की। फोटो में एक बुजुर्ग किसान को सुरक्षा बल का जवान लाठी मारता दिख रहा है।
भाजपा आईटी सेल के इंचार्ज अमित मालवीय ने राहुल को जवाब देते हुए 15 सेकंड का वीडियो पोस्ट किया। वीडियो में दिख रहा है कि पुलिसकर्मी ने लाठी उठाई जरूर, पर किसान को लाठी लगी नहीं।
सोशल मीडिया पर अमित मालवीय द्वारा शेयर किया गया वीडियो अब इसी दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि असल में पुलिस ने किसी पर लाठी बरसाई ही नहीं। भास्कर ने इस दावे की पड़ताल की।
और सच क्या है ?
राहुल गांधी ने सिर्फ एक फोटो शेयर किया। अमित मालवीय ने भी केवल 15 सेकंड का ही वीडियो शेयर किया। इंटरनेट पर हमने वीडियो के की-फ्रेम्स के जरिए वह पूरा वीडियो खंगालना शुरू किया, जिसका छोटा हिस्सा शेयर कर अमित मालवीय ने इसे प्रोपेगैंडा बताया है।
EURO News की वेबसाइट पर हमें 50 सेकंड का वीडियो मिला। इसमें देखा जा सकता है कि वृद्ध किसान पर एक के बाद एक सुरक्षा बल के 2 जवानों ने लाठी मारी। यही नहीं, इसके बाद कई अन्य प्रदर्शनकारियों को भी लाठी मारी गई।
RT के यूट्यूब चैनल पर 1:30 मिनट के इस वीडियो में भी देखा जा सकता है कि बुजुर्ग किसान के बाद कई अन्य प्रदर्शनकारियों पर भी सुरक्षा बल के जवानों ने लाठियां भांजीं।
साफ है कि भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय का ये दावा झूठा है कि वायरल फोटो में दिख रहे किसान के साथ हिंसा नहीं हुई।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है, हर 100 सेकंड में एक बच्चा HIV से संक्रमित हो रहा है। पिछले साल दुनियाभर में HIV से 3,20,000 बच्चे और टीनएजर्स संक्रमित हुए। इनमें से 1,10,000 बच्चों की मौत हो गई। इसके बावजूद कोरोनाकाल में HIV के मरीजों के ट्रीटमेंट पर बुरा असर पड़ा है। मरीजों का ट्रीटमेंट छूटा और जांच भी ठप हो गई। आज वर्ल्ड एड्स डे है। इस मौके पर जानिए कोरोनाकाल में HIV मरीजों पर क्या असर पड़ा....
कोरोना और HIV मरीजों की चुनौतियां, 4 बड़ी बातें
1. इलाज और टेस्टिंग 60 फीसदी तक घटी
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोनाकाल में HIV यानी ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस से संक्रमित बच्चों के इलाज और टेस्टिंग में 60 फीसदी तक गिरावट आई। एंटी-रेट्रोवायरल थैरेपी भी 50 फीसदी मरीजों को नहीं दी जा सकी। बच्चों की टेस्टिंग भी 10 फीसदी कम हुई। पिछले कुछ महीनों में हालात सुधरे हैं, लेकिन 2020 के टार्गेट से दूर हैं।
2. 73 देशों ने बताया, दवाओं का स्टॉक खत्म होने वाला है
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, कोरोना की वजह से एड्स की जीवनरक्षक दवाएं मरीजों तक पहुंचाने में बाधाएं आईं। WHO का एक सर्वे कहता है, 73 देशों ने चेताया है कि कोविड-19 महामारी के कारण उनके यहां एड्स की जीवनरक्षक दवाओं का स्टॉक खत्म होने वाला है। 24 देशों ने कहा, उनके यहां एड्स की जरूरी दवाएं या तो बहुत कम हैं या उनकी सप्लाई बुरी तरह बाधित हुई है।
3. सबसे बुरा समय लॉकडाउन रहा
HIV के मरीजों को सबसे ज्यादा दिक्कतें लॉकडाउन में आईं। दिल्ली, मुम्बई, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े शहरों में ओपीडी और दूसरे सेंटर बंद कर दिए गए। मुम्बई के रहने वाले अमन (बदला हुआ नाम) लॉकडाउन में दवाएं लेने एआरटी सेंटर जाने के लिए निकले लेकिन उन्हें रास्ते में ही रोककर घर वापस भेज दिया। देश के कई शहरों में यही हाल रहा। बाद में सरकार ने दवाएं लेने के लिए ढील तो दी लेकिन ट्रांसपोर्ट ठप होने के कारण मरीज दवाओं से दूर रहे।
4. मरीजों में खत्म नहीं हुआ डर
HIV के मरीजों को रोज दवाएं लेना जरूरी है, ऐसा न होने पर वायरस फिर से एक्टिव हो सकता है। मरीजों को एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी की दवाएं दी जाती हैं। एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी की दवाइयों की तीन लाइन होती है। अगर किसी वजह से पहली लाइन की दवाइयां रुक जाएं तो दूसरी लाइन शुरू करनी पड़ती है। दूसरी लाइन की दवा हर अस्पताल में मौजूद नहीं होती है, इसलिए भी मरीजों डर खत्म नहीं हुआ।
एंटी रेट्रोवायरल दवाओं के 3 लाइन के फर्क को ऐसे समझा जा सकता है। HIV के मरीज का शुरुआती इलाज लाइन-1 की दवा से होता है। इसका मतलब है पहली स्टेज। जब इन दवाओं का असर कम होने लगता है तो डॉक्टर्स मरीजों को लाइन-2 यानी दूसरी स्टेज की दवाएं देना शुरू करते हैं। जब लाइन-2 की भी दवाओं का असर खत्म हो जाता है, तब मरीज को लाइन-3 की दवा खाने की जरूरत पड़ती है।
HIV के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में और सबसे कम अरुणाचल प्रदेश में
नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, देशभर में 23.49 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हैं। इसके सबसे ज्यादा 3.96 लाख मरीज महाराष्ट्र में हैं। वहीं, सबसे कम 1 हजार मामले अरुणाचल प्रदेश में हैं।
एड्स और HIV में कंफ्यूज मत हों, इसका फर्क समझें
मेडिकल फील्ड की सबसे विश्वसनीय वेबसाइट वेबएमडी के मुताबिक, एड्स की शुरुआत ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस के संक्रमण से होती है। यह वायरस असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सुई या ब्लड के जरिए इंसान में पहुंचता है। अगर HIV का इलाज नहीं करते हैं तो एड्स हो सकता है। एड्स HIV की सबसे खतरनाक स्टेज है।
HIV इंसान के रोगों से लड़ने की क्षमता को धीरे-धीरे कमजोर करता रहता है। जरूरी नहीं है कि जिस इंसान में HIV का संक्रमण हुआ तो उसे एड्स हो। अगर लगातार ट्रीटमेंट कराते हैं तो HIV के संक्रमण को एड्स की स्टेज पर पहुंचने से रोका जा सकता है।
कब कराएं HIV टेस्ट
जिन लोगों के पार्टनर HIV पॉजिटिव हैं उन्हें यह टेस्ट कराना चाहिए। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं और जिन लोगों को बार-बार अन्य बीमारियों का संक्रमण होता है, उन्हें यह टेस्ट जरूर कराना चाहिए। अगर गर्भवती मां HIV संक्रमित है तो दवाओं के जरिए बच्चे में यह वायरस जाने से रोका जा सकता है।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज का तीसरा और आखिरी मुकाबला बुधवार को कैनबरा में खेला जाएगा। मनुका ओवल मैदान पर जब भारत मैदान पर उतरेगा, तब उसके सामने ऑस्ट्रेलिया दौरे पर अपनी पहली जीत दर्ज करने की चुनौती होगी। इसके साथ ही टीम विदेशी जमीन पर लगातार दूसरे क्लीन स्वीप से बचना चाहेगी। इससे पहले जनवरी-फरवरी में न्यूजीलैंड दौरे पर भारत को कीवी टीम ने 3-0 से हराया था।
कैनबरा के मैदान की बात करें, तो ऑस्ट्रेलिया ने यहां खेले अपने चारों मुकाबले जीते हैं। वहीं, भारत ने इस मैदान पर अब तक कुल 2 मुकाबले खेले हैं और दोनों में उसे हार का सामना करना पड़ा है। इस सीरीज में भारतीय बॉलर्स स्ट्रगल करते नजर आए हैं। ऐसे में अगर भारत को जीत दर्ज करनी है, तो बॉलर्स को लय में आना होगा।
सीरीज में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों का बोलबाला
सीरीज में ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज पूरी तरह से भारतीय बॉलर्स पर हावी रहे हैं। स्टीव स्मिथ ने पिछले दोनों वनडे में शतक जड़ा। वहीं, कप्तान एरॉन फिंच ने पहले वनडे में शतक और दूसरे मुकाबले में फिफ्टी लगाई। चोट की वजह से सीरीज से बाहर होने वाले डेविड वॉर्नर ने भी दोनों मुकाबलों में फिफ्टी लगाई। स्मिथ-फिंच के अलावा मार्नस लाबुशाने और ग्लेन मैक्सवेल भी अच्छी फॉर्म में हैं।
भारतीय बल्लेबाजों की बात करें, तो उन्हें शुरुआत तो मिली, लेकिन वे उसे बड़े स्कोर में तब्दील नहीं कर सके। शिखर धवन और हार्दिक पंड्या ने पहले वनडे में फिफ्टी लगाई, लेकिन टीम को जीत नहीं दिला सके। इसके बाद दूसरे वनडे में कप्तान विराट कोहली और उप-कप्तान लोकेश राहुल ने फिफ्टी लगाई, लेकिन बड़ा स्कोर नहीं बना सके। ऐसे में तीसरे वनडे में भारतीय बल्लेबाजों को बड़ा स्कोर बनाकर टीम को जीत दिलानी होगी।
भारतीय गेंदबाज लय में नहीं दिखे
टीम की गेंदबाजी भारत की हार का सबसे बड़ी वजह रही है। भारतीय बॉलर्स शुरुआती ओवर में विकेट नहीं ले पा रहे हैं। यही नहीं, भारतीय बॉलर्स को जमकर रन पड़ रहे हैं। मोहम्मद शमी-जसप्रीत बुमराह जैसे दिग्गज गेंदबाज भी रन रोकने में नाकाम साबित हुए हैं। ऐसे में अगर टीम को जीतना है, तो बॉलर्स को जिम्मेदारी लेनी होगी और कंगारू टीम के विकेट निकालने होंगे।
वॉर्नर-कमिंस की गैर-मौजूदगी भारत के लिए मौका
चोट की वजह से वॉर्नर टीम का हिस्सा नहीं हैं। वहीं, पैट कमिंस को टेस्ट सीरीज की तैयारी के मद्देनजर आराम दिया गया है। ऐसे में इन दोनों दिग्गजों के न होने से भारत के पास अच्छा मौका होगा। भारतीय बॉलर्स पिछले 5 मुकाबले से पावर-प्ले के दौरान चले आ रहे विकेटों के सूखे को दूर कर सकते हैं और भारतीय बल्लेबाज कमिंस की गैर-मौजूदगी में ऑस्ट्रेलिया पर अटैक कर सकते हैं।
कोहली के पास एक और रिकॉर्ड बनाने का मौका
भले ही भारत यह सीरीज हार चुका है, लेकिन तीसरे वनडे में कोहली के पास एक और रिकॉर्ड अपने नाम करने का मौका होगा। कोहली अगर इस मैच शतक जड़ने में कामयाब हो जाते हैं, तो वे बतौर कप्तान सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले खिलाड़ी बन जाएंगे। अभी कोहली और पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग के नाम 41-41 शतक दर्ज हैं।
ऑस्ट्रेलिया से 7वीं सीरीज हारा भारत
शुरुआती दोनों मुकाबले जीतकर ऑस्ट्रेलिया पहले ही सीरीज अपने नाम कर चुका है। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच इस सीरीज को मिलाकर कुल 13 वनडे सीरीज खेली गईं हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया ने 7 और भारत ने 6 सीरीज अपने नाम कीं हैं। ऑस्ट्रेलिया ने घर में भारत के खिलाफ 3 द्विपक्षीय वनडे सीरीज खेलीं, जिसमें दो जीती और एक हारी है।
मौसम और पिच रिपोर्ट
कैनबरा में सामान्य रूप से आसमान साफ रहेगा। बीच-बीच में बादल छा सकते हैं। अधिकतम तापमान 26 डिग्री और न्यूनतम तापमान 12 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है। पिच से बल्लेबाजों को मदद मिल सकती है। यहां खेले गए पिछले 9 वनडे मैचों में पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम का सक्सेस रेट 77.77% है।
हेड-टू-हेड
भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच अब तक 142 वनडे खेले गए। इसमें टीम इंडिया ने 52 मैच जीते और 80 हारे हैं, जबकि 10 मुकाबले बेनतीजा रहे। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसी के घर में भारतीय टीम ने 53 वनडे खेले, जिसमें से 13 जीते और 38 मैच हारे हैं। 2 वनडे बेनतीजा रहे।
भारत ने पिछली सीरीज में 2-1 से ऑस्ट्रेलिया को हराया था
पिछली बार भारतीय टीम ने जनवरी 2019 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर 3 वनडे की सीरीज खेली थी। पहला वनडे हारने के बाद टीम इंडिया ने यह सीरीज 2-1 से जीती थी। तब भी भारतीय टीम की कमान विराट कोहली के हाथ में ही थी। ऑस्ट्रेलिया की कप्तानी भी एरॉन फिंच के ही पास थी।
नमस्कार!
प्रधानमंत्री सोमवार को वाराणसी पहुंचे। सात घंटे तक वे अपने संसदीय क्षेत्र में रहे। यहां उन्होंने किसानों से लेकर राम तक की चर्चा की। उन्होंने कहा कि कोरोना में काफी कुछ बदला, लेकिन काशी की शक्ति-भक्ति और ऊर्जा आज भी वैसी ही है। यहां के निवासी ही देव हैं, जो आज भी दीप जला रहे हैं। बहरहाल, शुरू करते हैं न्यूज ब्रीफ।
आज इन इवेंट्स पर रहेगी नजर
मौसम विभाग ने निवार के बाद बंगाल की खाड़ी में एक और तूफान की चेतावनी दी है। तमिलनाडु, केरल और लक्षद्वीप के तटीय इलाकों में 1 से 4 दिसंबर तक इससे भारी बारिश हो सकती है।
आज से रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट यानी RTGS सुविधा 24 घंटे और सातों दिन उपलब्ध रहेगी। अब लोग RTGS के जरिए साल के 365 दिन कभी भी पैसों का लेन-देन कर सकेंगे।
सरकार हर महीने की पहली तारीख को रसोई गैस यानी LPG सिलेंडरों के दामों की समीक्षा करती है। आज देशभर में रसोई गैस के दाम बदल सकते हैं। हालांकि, पिछले दो महीनों से इसके दाम नहीं बदले हैं।
देश-विदेश
मोदी बोले- किसानों को छलने वाले झूठा डर दिखा रहे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। उन्होंने प्रयागराज-वाराणसी 6 लेन हाईवे का लोकार्पण किया। यहां उन्होंने 40 मिनट के भाषण में 26 मिनट किसानों पर बात की। उन्होंने कहा कि MSP और यूरिया के नाम पर छल करने वाले अब कृषि कानूनों पर झूठा डर दिखा रहे हैं। मोदी ने कहा- मैं काशी की पवित्र धरती से कहना चाहता हूं कि अब छल से नहीं, गंगाजल जैसी नीयत से काम किया जा रहा है।
काशी विश्वनाथ का अभिषेक करने क्रूज से पहुंचे मोदी
मोदी काशी विश्वनाथ मंदिर भी पहुंचे। यहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ का अभिषेक किया। मंदिर पहुंचने के लिए मोदी ने क्रूज की सवारी की। विश्वनाथ कॉरिडोर का जायजा लेकर मोदी देव दीपावली में शामिल हुए। इसके बाद वे भगवान बुद्ध की तपस्थली सारनाथ गए।
पांचवें दिन भी जारी रहा किसानों का प्रदर्शन
केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन सोमवार को 5वें दिन भी जारी रहा। किसानों ने दिल्ली के 5 एंट्री पॉइंट्स को सील करने की बात कही थी। इसके बाद पुलिस ने सिंघु और टिकरी बॉर्डर को आवाजाही के लिए बंद कर दिया। अब सरकार ने उन्हें मंगलवार को दोपहर 3 बजे बातचीत के लिए बुलाया है। इससे पहले 14 अक्टूबर और 13 नवंबर को भी सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए बुलाया था।
PM मोदी का मिशन कोरोना कवच
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 दिन में दूसरी बार कोरोना वैक्सीन बनाने वाली टीमों से बात की। उन्होंने सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से जेनोवा बायोफार्मा, बायोलॉजिकल ई और डॉ. रेड्डीज की टीमों से चर्चा की। पीएम ने लोगों को वैक्सीन के बारे में आसान भाषा में जानकारी देने की अपील की। मोदी ने शनिवार को पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट, अहमदाबाद के जायडस बायोटेक पार्क और हैदराबाद में भारत बायोटेक फैसिलिटी का दौरा किया था।
कोरोना पर 4 दिसंबर को ऑल पार्टी मीटिंग
सरकार ने कोरोना के मुद्दे पर 4 दिसंबर यानी शुक्रवार को सुबह 10.30 बजे ऑल पार्टी मीटिंग (सर्वदलीय बैठक) बुलाई है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होने वाली इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। न्यूज एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी। कोरोना पर ये दूसरी ऑल पार्टी मीटिंग होगी।
बाबा आमटे की पोती ने सुसाइड किया
कुष्ठ रोगियों के लिए आनंदवन संस्था चलाने वाले डॉक्टर बाबा आमटे की पोती डॉक्टर शीतल आमटे (41) ने सोमवार तड़के चंद्रपुर में अपने घर में आत्महत्या कर ली है। उन्होंने जहर का इंजेक्शन लगाकर जान दी। कुछ दिन पहले उन्होंने आमटे महारोगी सेवा समिति में घोटाले की बात कही थी। वे समिति की CEO थीं। जान देने से पहले शीतल ने सोशल मीडिया पर वॉर एंड पीस की एक्रेलिक पेंटिंग शेयर की थी।
भास्कर एक्सप्लेनर
कोरोना ने एविएशन इंडस्ट्री को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया है। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) का अनुमान है कि दुनियाभर में एविएशन इंडस्ट्री को 31 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। कई देशों में डोमेस्टिक फ्लाइट्स तो शुरू हो गई हैं, लेकिन इंटरनेशनल फ्लाइट्स अभी भी पूरी तरह ऑपरेशनल नहीं हैं। इंडस्ट्री को उबारने के लिए IATA ने कोविड पासपोर्ट का प्लान पेश किया है।
पॉजिटिव खबर
आज कहानी इलाहाबाद की गीता जायसवाल की। कभी एक-एक रुपए के लिए परेशान थीं। टिफिन सेंटर शुरू करने से लेकर इडली-सांभर के स्टॉल तक की उनकी कहानी बेहद इंस्पायरिंग है। एक टिफिन से पूरा बिजनेस खड़ा किया। कोरोना के चलते जब काम ठप हो गया, तो उन्होंने नए सिरे से शुरुआत की। अब वे इडली-सांभर और डोसा का स्टॉल लगाती हैं। महीने में 40 से 45 हजार रुपए की कमाई होती है।
ब्रह्मपुत्र पर चीन बनाएगा सबसे बड़ा बांध
चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर अब तक का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है। अगले साल से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो जाएगा। इससे भारत और बांग्लादेश की चिंता बढ़ गई है। दोनों ही देश ब्रह्मपुत्र के पानी का इस्तेमाल करते हैं। भारत ने चीन से ट्रांस बॉर्डर नदी समझौते का पालन करने को कहा है।
कुछ मामलों में मॉडर्ना की वैक्सीन 100% असरदार
अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्ना ने बताया कि वह अपनी कोरोना वैक्सीन के इमरजेंसी यूज की मंजूरी के लिए अमेरिका और यूरोपियन रेगुलेटर्स को अप्लाई करेगी। वैक्सीन के लास्ट स्टेज ट्रायल के बाद कंपनी ने दावा किया कि यह कोरोना से लड़ने में 94% तक कारगर है। कुछ गंभीर मामलों में तो इसने 100% असर दिखाया है।
सुर्खियों में और क्या है...
दिल्ली में अब प्राइवेट लैब में 800 रुपए में कोरोना टेस्ट कराया जा सकेगा। सीएम अरविंद केजरीवाल ये जानकारी दी।
कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें अब यूरोप में हो रहीं हैं। इटली, पोलैंड, रूस, यूके, फ्रांस समेत 10 देशों में हर दिन 3 से 4 हजार लोग दम तोड़ रहे हैं।
जापान के क्राउन प्रिंस फुमिहितो ने अपनी बेटी माको को बॉयफ्रेंड केई कोमुरो से शादी करने की इजाजत दे दी है। शादी लंबे समय से टल रही थी।
from Dainik Bhaskar /national/news/top-news-today-news-cricket-news-farmers-protest-news-dainik-bhaskar-top-news-morning-briefing-today-modi-said-in-kashi-those-who-opposed-the-farmers-laws-cheated-ganga-water-in-our-mind-127967000.html
हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में आज ही के दिन कोई महिला प्रधानमंत्री बनी थी। ये न सिर्फ पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री थीं, बल्कि किसी मुस्लिम देश की भी पहली महिला थीं, जो प्रधानमंत्री बनीं। इनका नाम था बेनजीर भुट्टो। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सबसे बड़ी बेटी थीं बेनजीर, जिनका जन्म 21 जून 1953 को कराची शहर में हुआ था।
बेनजीर भुट्टो ने अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। 1977 में बेनजीर लंदन से पाकिस्तान लौट आईं। 1978 में जनरल जिया उल-हक पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। उनके आते ही बेनजीर के पिता जुल्फिकार अली भुट्टो को हत्या के एक मामले में फांसी हो गई। पिता की मौत के बाद बेनजीर ने राजनीतिक विरासत को संभाला।
10 अप्रैल 1986 को उन्होंने पाकिस्तान में सैन्य शासन के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। 1988 में एक प्लेन क्रैश में जिया उल-हक की मौत हो गई। उसके बाद 1 दिसंबर 1988 को बेनजीर पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। प्रधानमंत्री बनने से 3 महीने पहले ही उन्होंने बेटे को जन्म दिया था। जिस समय वो प्रधानमंत्री बनीं, उस समय उनकी उम्र 35 साल थी।
बेनजीर भुट्टो दो बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। पहली बार 1988 से 1990 तक और दूसरी बार 1993 से 1996 तक। भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने पर बेनजीर को 1999 में देश छोड़ना पड़ा था। 2007 में जब फौजी ताकत दम तोड़ रही थी और लोग लोकतंत्र के लिए आवाज उठा रहे थे, तब बेनजीर भुट्टो लौटी थीं। 27 दिसंबर 2007 को चुनाव प्रचार के दौरान उनकी हत्या कर दी गई।
लंदन के मैडम तुसाद म्यूजियम पर लगा मैडम तुसाद का मोम का पुतला।
मोम के पुतले बनाने वाली मैडम तुसाद का जन्म
1 दिसंबर 1761 को मैडम तुसाद का जन्म फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में हुआ था। उनका नाम मैरी ग्रासहोल्ट्ज था। उनकी मां पेरिस में डॉ. फिलिप कर्टियस के यहां काम करती थीं। डॉ. कर्टियस मोम के पुतले बनाया करते थे। डॉ. कर्टियस से ही मैडम तुसाद ने मोम के पुतले बनाना सीखा। मैडम तुसाद ने 16 साल की उम्र में पहला मोम का पुतला बनाया था। उन्होंने उस समय एक फिलॉस्फर फ्रैंक्वाइस वॉल्टैयर का पुतला बनाया था।
फ्रेंच रिवोल्यूशन के दौरान उन्होंने तीन महीने जेल में भी काटे। 1794 में उन्होंने फ्रैंक्वाइस तुसाद से शादी की। 1835 में उन्होंने लंदन की बेकर स्ट्रीट पर पहला स्टूडियो खोला। 1850 में 89 साल की उम्र में मैडम तुसाद का निधन हो गया। 1884 में उनका म्यूजियम बेकर स्ट्रीट से मेरिलबोन रोड पर शिफ्ट कर दिया गया, जहां ये आज भी है।
भारत और दुनिया में 1 दिसंबर की महत्वपूर्ण घटनाएं इस प्रकार हैं:
1640 : पुर्तगाल की 60 वर्ष की गुलामी के बाद स्पेन आजाद हुआ।
1761 : मोम के पुतलों के संग्रहालय बनाने वाली मैडम तुसाद का जन्म।
1959 : दुनिया के 12 देशों ने अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर कर अंटार्कटिक महाद्वीप को तमाम सैन्य गतिविधियों से मुक्त करके वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए संरक्षित रखने का संकल्प लिया।
1959 : बाहरी अंतरिक्ष से पृथ्वी का पहला रंगीन फोटो लिया गया।
1963 : नगालैंड भारत का 16वां राज्य बना।
1965 : सीमा सुरक्षा बल (BSF) की स्थापना।
1973 : इजरायल के संस्थापक डेविड बेन गुरियन का निधन।
1987 : अफगानिस्तान में नए संविधान के अनुसार डॉ. नजीबुल्लाह को देश का राष्ट्रपति चुना गया।
1991 : एड्स डे की शुरुआत।
1990 : पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित का निधन।
2001 : अफगानिस्तान में कंधार एयरपोर्ट पर तालिबान विरोधी कबायली संगठन का कब्जा।
2008 : बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष शिवचंद्र झा का निधन।
सभ्यताओं के विकास के साथ-साथ इंसान लगातार जानलेवा वायरसों का हमला झेलता रहा है। इनसे करोड़ों लोगों की जान भी चली गई। हर बार लगा कि इंसानों पर इससे बड़ा खतरा कभी नहीं मंडराया, मगर तर्कशक्ति के बूते विज्ञान से लैस इंसानों ने बड़े से बड़े वायरस को काबू कर लिया। आधुनिक समय का ऐसा ही एक वायरस है एचआईवी। जो जानलेवा एड्स की वजह बनता है। कई दशकों की दहशत के बाद आखिर 2015 में संयुक्त राष्ट्र की अगुवाई में सभी देशों ने 2030 तक इसे दुनिया से मिटाने का ऐलान कर दिया है और हम धीरे-धीरे इस ओर बढ़ भी रहे हैं।
मौजूदा समय में पूरी दुनिया कोरोना वायरस के ऐसे ही हमले का सामना कर रही है। भारत समेत बड़े-बड़े देश इससे हिल गए, मगर इस बार भी इंसानों के जज्बे ने कोरोना पर लगाम कसना शुरू दिया है। दुनिया में कोरोना की करीब 48 वैक्सीन विकसित की जा रही हैं। इनमें से करीब 9 वैक्सीन का ट्रायल तीसरे चरण में हैं। माना जा रहा है कि 2021 में कोरोना पर भी इंसान निर्णायक जीत हासिल कर लेगा।
दरअसल, वायरस धरती पर मौजूद सबसे पुराने जीवों में से एक हैं। साइंटिफिक अमेरिकन मैगजीन के अनुसार करीब 6 लाख ऐसे वायरस हैं जो जानवरों से इंसानों में प्रवेश कर सकते हैं। एचआईवी, कोरोना के अलावा स्मॉलपॉक्स या चेचक, सार्स, इबोला, स्वाइन फ्लू, रैबीज भी ऐसे ही जानलेवा वायरस हैं। चेचक ने तो 18वीं और 19वीं सदी में 50 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान ले ली थी, मगर हमने वैक्सीन बनाकर दुनिया से इसे खत्म कर दिया। वर्ल्ड एड्स डे पर हम आपको बता रहे हैं इंसानों पर हमला करने वाले 10 सबसे खतरनाक वायरस और उसपर इंसानी जीत की कहानी।
एचआईवी : संक्रमण फैलने की रफ्तार थमी, 2030 तक जड़ से करेंगे खत्म
आधुनिक दुनिया का खतरनाक वायरस है। पिछले एक दशक में एचआईवी फैलने की रफ्तार थमी है, मगर भारत में अभी चुनौती बाकी है। भारत में करीब 22 लाख एड्स पीड़ित हैं। यूएन एड्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2018 में 88 हजार नए मरीज मिले वहीं एड्स से 69 हजार लोगों की मौत हुई। दुनिया के कुल एड्स मरीजों के 10% भारत में है। इंडेक्समंडी पोर्टल के हिसाब से दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया के बाद भारत में एड्स के सबसे ज्यादा मरीज हैं। ऐसी समस्याओं के बावजूद संयुक्त राष्ट्र की ओर से 2015 में तय 12 सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) में से तीसरे लक्ष्य (बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण) के तहत 2030 तक एचआईवी को खत्म करना है। प्रोजेक्ट के तहत 2030 तक नए एचआईवी एड्स से होने वाली मौतों को 90-90% तक कम करना है। इसे प्रोजेक्ट-90 भी कहा जाता है।
इसके तहत टारगेट है कि
एचआईवी संक्रमितों में 90% को खुद के संक्रमित होने का पता हो
संक्रमित होने का पता चलने पर कम से कम 90% को इलाज मिले
इलाज कराने वाले 90% मरीजों में दवाओं से वायरल लोड बेहद कम हो
चेचक : इतिहास का पहला वायरस जिसे वैक्सीन से पूरी तरह खत्म किया गया
इंसान चेचक के भयानक प्रकोप के कई दौर देख चुका है। वैरियोला वायरस से फैले इस महामारी की शुरुआत यों 1520 में मानी जाती है, मगर मिस्र में मिली ममी में भी इसके सबूत मिले हैं। किसी भी वायरस की तुलना में चेचक दुनिया के सबसे अधिक लोगों की जान (30 से 50 करोड़ मौत) ले चुका है। इससे जान जाने की दर 90% है। अकेले बीसवीं सदी में ही इस बीमारी से 20 करोड़ लोगों की मौत हुई। हालांकि वैक्सीनेशन के जरिए इस वायरस को अब दुनिया से पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। 1796 में ब्रिटेन के डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने इसकी पहली वैक्सीन ईजाद की थी। मानवता के इतिहास में केवल चेचक ऐसी बीमारी है, जिस पर किसी दवा या वैक्सीन के जरिए पूरी तरह नियंत्रण पाया जा सका। 1979 में डब्लूएचओ ने पूरी दुनिया को चेचक मुक्त घोषित कर दिया था।
इन्फ्लुएंजा- इसके किसी न किसी वायरस से हर साल करीब 5 लाख लोग गंवाते हैं जान
आम खांसी-जुकाम को भी फ्लू कहते हैं और स्पेनिश फ्लू को भी। इन्फ्लूएंजा के 4 कैटेगरी के वायरस कई तरह के संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। स्पेनिश फ्लू इंसान के हालिया इतिहास की सबसे भयंकर महामारियों में से एक है। माना जाता है कि इससे 5 करोड़ लोगों मौत हुई थी। मौजूदा कोरोना की तरह स्पेनिश फ्लू से निपटने के लिए भी लोगों को क्वारंटीन किया जाता था। 1968 में फैले हॉन्गकॉन्ग फ्लू से दस लाख लोगों की जान गई थी। आज भी वो वायरस सीजनल फ्लू के तौर पर हमारे बीच में है। इसी तरह स्वाइन फ्लू भी एच1एन1 वायरस के ही एक और रूप से फैलती है। माना जाता है कि 2009 में 70 करोड़ से 140 करोड़ लोग असिम्प्टोमेटिक (बिना लक्षणों वाले) स्वाइन फ्लू से संक्रमित हुए, जो उस समय की 6.8 अरब आबादी का करीब 11 से 21% था। मगर इंसानों ने इसे भी काबू कर लिया। डब्लूएचओ ने 2010 में इस महामारी को भी समाप्त घोषित कर दिया।
हंतावायरस: संक्रमित चूहे या गिलहरी से फैला, चीन में बनी वैक्सीन
चूहों से फैलने वाले हंता वायरस के बारे में 1993 में पहली बार पता चला था। जब अमेरिका में एक कपल इस वायरस से संक्रमित होने के कारण मर गया था। इसके बाद कुछ ही महीनों में इस बीमारी से 600 लोगों की मौत हो गई थी। हंता वायरस से संक्रमित चूहे या गिलहरी किसी इंसान को काट लें तो इससे भी संक्रमण फैल सकता है। इस वायरस के फैलने का एक प्रमुख कारण चूहों के मल-मूत्र की जगह के संपर्क में आना है। कोरियाई युद्ध के दौरान हंता वायरस की वजह से 3000 सैनिक बीमार हुए थे, इनमें से 12 फीसदी मारे गए थे।
रैबीज : हर साल 20 हजार लोगों की मौत, वैक्सीन से पक्का बचाव मुमकिन
रैबीज एक वायरल बीमारी है, इसके कारण गर्म रक्त वाले जीवों के मस्तिष्क में सूजन (एक्यूट इन्सेफेलाइटिस) होती है। 99% यह बीमारी कुत्तों के काटने या उनसे खरोंच लगने के कारण होता है। भारत में हर साल 20 हजार लोगों की जान रैबीज से जाती है, जिनमें 40% की उम्र 15 साल से कम होती है। जबकि पूरी दुनिया में यह आंकड़ा 59 हजार है। 150 से ज्यादा देशों में फैली इस बीमारी की एंटी रैबीज वैक्सीन मुफ्त लगाई जाती हैं। यह आमतौर पर कुत्तों के काटने और संक्रमित जानवरों से खरोंच लगने के कारण होता है। प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने 6 जुलाई 1885 में रैबीज के टीके का सफल परीक्षण किया। उनकी इस खोज ने मेडिकल की दुनिया में क्रांति ला दी और मानवता को एक बड़े संकट से बचा लिया था।
इबोला: 44 सालों में 16 देशों में फैला, इसकी वैक्सीन बनी
इबोला सबसे पहले 1967 में सामने आया था। 44 सालों के बाद भी इस वायरस को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका है। 44 सालों में यह वायरस 16 देशों में फैल चुका है। सीरिया, लाइबेरिया और गिनी में इसके सबसे ज्यादा मामले सामने आए। 31 हजार मामलों में 28 हजार से ज्यादा मामले इन तीन देशों में आए, जो कुल मामलों का 92% है। इसे डब्ल्यूएचओ ने पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया। इस संक्रमण से अभी तक करीब 13 हजार लोगों की जान जा चुकी है। 2013 से 2016 के बीच ही सीरिया, लाइबेरिया और गिनी के 11,300 लोगों की जान ली इस संक्रमण से गई।
मर्स : 8 सालों में 27 देशों तक पहुंचा, 5 वैक्सीन तैयार होने की कगार पर
वायरस सबसे पहले 2012 में सउदी अरेबिया में सामने आया और फिर 2015 में साउथ कोरिया। । जिस वर्ग से सार्स कोरोना वायरस और मौजूदा कोविड-19 आते हैं, उसी वर्ग से मर्स का भी संबंध था। सबसे पहले यह बीमारी ऊंटों को हुई और उससे इंसानो में फैली।। पिछले 8 साल में इसके मामले सामने आ रहे हैं। आठ साल में यह वायरस 27 देशों में फैल चुका है। अभी तक इस वायरस के 2494 मामले सामने आ चुके हैं। इसके चलते अब तक 858 लोगों की जान जा चुकी है। इस वायरस की मृत्यु दर 34% से ऊपर है।
रोटावायरस : हर साल 4 लाख बच्चों की मौत, वैक्सीन से इसे भी मारना मुमकिन
विकासशील देशों में रोटावायरस छोटे बच्चों का अपना शिकार ज्यादा बनाता है। 2008 में रोटावायरस के संक्रमण से 5 साल से ज्यादा उम्र के करीब 4.5 लाख बच्चों की मौत हो गई थी, वहीं 2013 में रोटावायरस के संक्रमण के कारण लगभग 2,15,000 मौतें हुई थी, जिसमें ज्यादातर बच्चे ही थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल इस रोग से करीब 4 लाख बच्चों की मौत हो जाती हैं। इससे संक्रमित बच्चों में डायरिया की गंभीर शिकायत पाई जाती है। पहला वैक्सीन 2006 में मैक्सिको को मिला था। बाजार में अब इसके दो वैक्सीन उपलब्ध हैं।
मारबर्ग : मरने की दर 90%, 2019 में अमेरिका ने बनाई वैक्सीन
आज से 53 साल पहले 1967 में यह वायरस सर्बिया और युगोस्लाविया में सबसे पहले सामने आया। यह वायरस जर्मनी की एक लैब से लीक हो गया था, जो कि बंदरों से इंसानों में आया था। 1967 से लेकर 2014 तक इस वायरस के मामले सामने आते रहे। 13 देशों में इस वायरस का असर देखा गया, जिसमें से अधिकतर अफ्रीकी देश हैं। अब तक इस वायरस के सिर्फ 587 मामले सामने आए हैं। सबसे ज्यादा मामले अंगोला और डीआर कांगो में सामने आए हैं। दोनों देशों को मिलाकर 528 मामले होते हैं, जो कुल मामलों का लगभग 90% है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सिर्फ 587 मामलों में 475 लोगों की मौत हो गई। यह दुनिया का सबसे जानलेवा वायरस है।
कोरोना : भारत में बनेगी रूसी वैक्सीन स्पूतनिक वी
चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ कोरोना वायरस दुनियाभर में एक खतरनाक महामारी का रूप ले चुका है। दुनिया में अब तक कोरोना के 6 करोड़ 30 लाख मामले सामने आ चुके हैं। 14 लाख 66 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। अच्छी बात ये कि अब तक 4 करोड़ 36 लाख लोग ठीक हो चुके हैं। भारत में अब तक अब तक 94.32 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं, 88.46 लाख लोग ठीक हो चुके हैं, जबकि 1.37 लाख मरीजों की मौत हो चुकी है। दुनिया में कोरोना की करीब 48 वैक्सीन विकसित की जा रही हैं। इनमें से करीब 9 वैक्सीन का ट्रायल तीसरे चरण में हैं। माना जा रहा है कि 2021 जून-जुलाई में इसकी भी वैक्सीन तैयार हो जाएगी।
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